Friday, September 21, 2007

LOVE


टूट कर बिखरने का डर है तो शीशे का महल बनाते क्यों हो
डरते हो जमीं पर चलते हुये तो इतनी ऊंचाई पर जाते क्यों हो
दिन में अगर मुझसे बिछुड कर चले जाते हो खुद कोसो दूर
रात को सपनों में आ-आ कर इशारों से मुझको बुलाते क्यों हो
जिन्दगी आसान बहुत है सांसों की रफ़्तार रुक जाने के बाद
मरने भी तो दो मुझको रोज एक नया ख्वाब दिखाते क्यों हो
किस्सा एक और टूटे हुये दिल का हो जायेगा सीने में दफ़न
नाजुक सा दिल है मेरा जानते हो फ़िर ठेस लगाते क्यों हो

अगर चुपाता तो अच्छा होता
तेरे मेरे नाम का न चर्चा होता
हम तो बदनाम हि थे शहर मे लेकीन
हमसे जुडकर हमराज तु न बदनाम होता !!

कहाँ कोई किसी को अपना बनता है यहाँ
जज़्बात पल पल मैं मित्ता है यहाँ
दोस्ती को कहते है खुदा का उपहार देखो
कहाँ कोई सच्चाई से निभाता है यहाँ